Wednesday, April 24, 2019

श्रीलंका में चरमपंथी हमले के पीछे किसका हाथ?

दस साल पहले गृहयुद्ध के ख़त्म होने के बाद श्रीलंका में हुए सबसे भयानक चरमपंथी हमले के पीछे किसका हाथ है ये रहस्य अब भी बना हुआ है.

हालाँकि तथाकथित इस्लामिक स्टेट ने अपने मीडिया पोर्टल 'अमाक़' पर इन हमलों की ज़िम्मेदारी क़बूल की है लेकिन इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती क्यूंकि आम तौर से इस्लामिक स्टेट हमलों के बाद हमलावरों की तस्वीरें प्रकाशित करके हमलों की ज़िम्मेदारी तुरंत क़बूल करता है.

इस बात का कोई सबूत नहीं है कि श्रीलंका के हमलों के तीन दिन बाद किया गया इसका दावा सही है.

श्रीलंका सरकार ने एक स्थानीय जेहादी गुट- नेशनल तौहीद जमात- का नाम लिया है और अधिकारियों ने बम धमाके किसी अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क की मदद से कराए जाने की बात की है.

अब तक 38 लोग हिरासत में लिए जा चुके हैं. इनमें से 26 लोगों को सीआईडी ने, तीन को आतंकरोधी दस्ते ने और नौ को पुलिस ने गिरफ़्तार किया है.

गिरफ़्तार किए गए लोगों में से सिर्फ़ नौ को अदालत में पेश किया गया है. ये नौ लोग वेल्लमपट्टी की एक ही फ़ैक्ट्री में काम करते हैं.

भारत में दक्षिण एशिया के सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञों को अब तक सार्वजनिक की गयी जानकारी के आधार पर लगभग यक़ीन है कि हमलों की तारें किसी ग्लोबल इस्लामिक चरमपंथी संगठन से मिलती हैं और उनके विचार में इसके पीछे तथाकथित इस्लामिक स्टेट का हाथ हो सकता है.

अजय साहनी काउंटर-टेरोरिज़्म के विशेषज्ञ हैं. उनकी नज़र पूरे दक्षिण एशिया पर है. उनके अनुसार हमलों के स्केल, नियोजन और जटिलता को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि इसमें किसी वैश्विक इस्लामिक चरमपंथी संगठन का हाथ है.

वो कहते हैं, "इस समय इस्लामिक स्टेट और अल-क़ायदा और इनके सहयोगी संगठन ही इतने बड़े पैमाने पर हमला करने की क्षमता रखते हैं."

साहनी कहते हैं कि ये संगठन इन दिनों काफ़ी दबाव में हैं लेकिन इनका पूरी तरह से ख़ात्मा नहीं हुआ है. "इन हमलों की योजना उन्होंने काफ़ी पहले बनायी होगी जिसे अंजाम देने का समय अब आया हो."

चरमपंथी हमलों पर निगाह रखने वाले सुशांत सरीन एक वरिष्ठ आतंक-विरोधी एक्सपर्ट हैं. इन हमलों पर उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?

वो कहते हैं, "पहली सोच एलटीटीई की तरफ़ जाती है. लेकिन वो इसमें शामिल नहीं हो सकते क्यूंकि सरकार ने उनकी कमर तोड़ दी है और आज भी उनपर ख़ुफ़िया एजेंसियों की नज़र है."

सुशांत सरीन कहते हैं, "इसके बाद ध्यान जाता है स्थानीय चरमपंथियों पर. लेकिन वो इन घातक हमलों का आयोजन करने की क्षमता नहीं रखते. तो उनका भी पूरी तरह से हाथ नहीं हो सकता. हमलों को देखते हुए लगता है कि इसमें ग्लोबल इस्लामिक संस्थाओं का ही हाथ हो सकता है."

सरीन ईस्टर त्यौहार पर हुए हमलों में किसी स्थानीय संगठन का पूरी तरह से हाथ होने से इंकार भी नहीं करते. वो कहते हैं, "ये संभव है कि अधिकारियों की नज़रों से ओझल किसी स्थानीय संगठन ने इतनी बड़ी क्षमताएं पैदा कर ली हों और इन पर अमल किया हो."

श्रीलंका के अधिकारियों ने नेशनल तौहीद जमात, स्थानीय संगठन का इन हमलों में हाथ होने की आशंका जताई है लेकिन साथ ये भी कहा है कि इनकी मदद किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन ने की है.

सरीन कहते हैं कि फ़िलहाल किसी भी संभावनाओं को दरकिनार करना एक भूल होगी. वो आगे कहते हैं, "अगर ये काम केवल एक स्थानीय संगठन का है तो ये ज़्यादा ख़तरनाक है, ये एक गंभीर बात होगी और अधिकारियों के लिए चिंता का एक बड़ा विषय है. वे तबाही मचा सकते हैं."

श्रीलंका में अधिकारी इन हमलों की जांच कर रहे हैं. इसमें इन्हें एफ़बीआई का सहयोग हासिल है.

लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार देश भर में एक घंटे के अंदर हुए सिलसिलेवार चरमपंथी हमलों पर गहरी नज़र डालने से तथाकथित इस्लामिक स्टेट की छाप नज़र आती है.

इसकी योजना बहुत गहराई से बनाई गयी थी. मुंबई में 26 नवंबर 2008 की रात को हुए चरमपंथी हमले आपको याद होंगे जिसमें 166 लोग मारे गए थे?

समुद्र के रस्ते कराची से मुंबई आये 10 चरमपंथी दक्षिण मुंबई के पांच मशहूर लैंडमार्क पर हमले शुरू कर देते हैं. बताया जाता है कि तीन दिनों तक चले इस हमले की तैयारी में डेढ़ साल का समय लगा था.

इसकी जानकारी ख़ुद इसकी योजना में शामिल डेविड कोलेमन हेडली ने अमरीका की एक अदालत को दी थी. पाकिस्तान के अंदर हमले की योजना बनाने वालों ने पहले हेडली को मानसिक और शारीरिक ट्रेनिंग दी. इसके बाद 10 युवाओं को ट्रेनिंग दी गयी. हेडली ने मुंबई का कई चक्कर लगाया और उन जगहों को चुना जहाँ हमले किये जाने थे. और 18 महीने के बाद इस योजना को अंजाम दिया गया.

सुशांत सरीन कहते हैं कि आत्मघाती हमलावरों के एक गिरोह को मानसिक, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक रूप से तैयार करने में महीनों लगे होंगे. श्रीलंका में हुए हमले में छह आत्मघाती हमलावर शामिल थे. ताक़तवर बम बनाने के लिए बहुत अनुभवी लोगों की ज़रुरत पड़ी होगी.

वो कहते हैं, "लोग कहते हैं इंटरनेट पर सर्च करके बम बनाया जा सकता है. लेकिन जिन घातक बमों का इस्तेमाल किया गया था उन्हें किसी अनुभवी शख़्स ने ही तैयार किया होगा."

शायद इसीलिए अजय साहनी का मानना है कि इस विशाल काम के लिए लोकल लोगों का इस्तेमाल तो किया गया होगा इसकी योजना स्थानीय लोगों की क्षमता से बाहर की बात है.

साहनी और सरीन दोनों इस बात से सहमत नज़र आते हैं कि इन हमलों में तथाकथित इस्लामिक स्टेट की छाप है. साहनी कहते हैं, "अगर आप इस्लामिक स्टेट के ज़रिए सीरिया और इराक़ में किये गए बड़े हमलों पर नज़र डालें तो श्रीलंका में हुए हमले अनोखे नहीं हैं. उनके लिए इस तरह के हमले आम बात हैं."

सरीन के अनुसार इस बड़े पैमाने पर हमले इस्लामिक स्टेट या अल-क़ायदा ही करा सकते हैं.

अपने तर्क के पक्ष में सरीन और साहनी दोनों इस बात की तरफ़ ध्यान दिलाते हैं कि श्रीलंका में हमले पश्चिमी देशों के ख़िलाफ़ थे.

सरीन कहते हैं, "ईसाई धर्म के धार्मिक स्थानों और पश्चिमी देशों से भरे पांच सितारा होटलों पर हमला करके इस्लामिक स्टेट ने अपने मुख्य दुश्मनों पर हमला किया है." उनके अनुसार अगर ये हमले बौद्ध धर्म के धार्मिक स्थानों पर किये जाते तो शायद इस्लामिक स्टेट पर शक नहीं होता.

श्रीलंका की पुलिस ने अब तक जिन गिरफ़्तार किए गए लोगों से पूछताछ की है उसका ख़ुलासा नहीं हुआ है लेकिन अधिकारियों ने इस बात की तरफ़ साफ़ इशारा किया है कि बाहर की ताक़तों ने लोकल लोगों का इस्तेमाल करके ये हमले कराये हैं.

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